STORYMIRROR

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

4  

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

मेरा ग़म

मेरा ग़म

1 min
314

आखिर क्यों बार बार दिल उदास होता है,

 फ़िक्र नहीं उसी की याद में दिल रोता है..

दर्द इतना है ग़म ए आरज़ूओं का,

कोई दरिया बह जाए आंसुओं का..

हर सुबह एक रोज नया दौर ए मुकाम लाती है,

कल हारी शाम जिंदगी फिर सुबह जीत जाती है..

हिम्मत और हिमाकत जो नहीं करता है,

वो कभी दौर ए मुकाम नहीं होता है...

टूट जाता है दिल ज़ब उम्मीद नहीं रहती,

बस यूँ ही फिर जिंदगी ख़ुश नहीं रहती..

हार गया दिल उम्मीद ए वफ़ा करके,

वो नहीं समझें प्यार जफ़ा करके..

टूट जाए वो कड़ी जो दिल जोड़ती है,

बहुत दर्द होता दिल में और जिंदगी जीती है..



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy