परदेस
परदेस
एक शिकायत है तुझसे माँ,क्यों मुझे ब्याह दिया विदेस?"
विदाई में क्यों कहा तूने,"अब से यही है तेरा अपना देस।
सच माँ! बड़ा सुंदर है परदेस, ऊँची इमारतें,चौड़ी सड़कें
और उनपर दौड़ती हुई भीड़ में भी नितांत अकेली सी मैं।
ताकती रहती सीला आसमान ,सूनी पथराई आँखों से,
शायद कोई हवा का झोंका ले आए,अपनों का संदेस।
पर हम भावुक लड़कियाँ सबको जल्दी अपना लेती हैं,
समय के साथ नए लोगों और घरों से रिश्ता बना लेती हैं।
परायों में अपनों की झलक पा, दिल से मुस्कुरा लेती हैं।
जब बरसता है सावन यहाँ तो मिट्टी यहाँ भी महकती है,
गाँव के खेत सी,मेरे बगीचे में,गौरैया यहाँ भी चहकती है।
ये धरती अब मुझे देवकी न सही पर यशोदा सी लगती है।
जा रे पवन!दे दे माँ-बाबा को संदेश कि ना हों वे उदास।
उनकी बिटिया ने जज्बातों के धागों से परदेस में बुन लिया ,
अपनी माटी की यादों और खुशबू से महकता इक स्वदेस।
