तुम न आना भूल कर कभी
तुम न आना भूल कर कभी


वह मंज़र तुमने न देखा
हम खुद से जुदा होते हुए,
आँखों से सैलाब बहा
तेरे दर से निकलते हुए ।
हम इतने मायूस हुए कि
अपना शहर ही छोड़ दिया
हमने अपने आप को भूलाकर
दूसरा जहान बसा लिया।
अब हमारी गलियों में
तुम न आना भूल कर कभी
हमने अपनी गलतियों को
कब का दफ़न कर दिया।