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Sujata Kale

Tragedy

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Sujata Kale

Tragedy

तुम न आना भूल कर कभी

तुम न आना भूल कर कभी

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वह मंज़र तुमने न देखा

हम खुद से जुदा होते हुए,

आँखों से सैलाब बहा

तेरे दर से निकलते हुए ।


हम इतने मायूस हुए कि

अपना शहर ही छोड़ दिया

हमने अपने आप को भूलाकर

दूसरा जहान बसा लिया।


अब हमारी गलियों में

तुम न आना भूल कर कभी

हमने अपनी गलतियों को

कब का दफ़न कर दिया।



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