इन्सान देखो कहाँ चल रहा है ।
इन्सान देखो कहाँ चल रहा है ।
जीवन मृत्यु से जूझ रहा है,
इन्सान देखो कहाँ चल रहा है।
हाथ पर पेट लेकर मल रहा है,
भाग्य उसके साथ छल रहा है।
अकेला नहीं,
अपनों के साथ गल रहा है।
इन्सान देखो कहाँ चल रहा है।
जाना चाहता है वापस अपनी,
गाँव - खेत की मिट्टी की ओर।
पर आज,
उसका गाँव उसे दुत्कार रहा है।
इन्सान देखो कहाँ चल रहा है।
पैदल ही चलकर सफर कर रहा है,
परिवार समेटकर आज भटक रहा है।
यातायात नहीं,
तो बंद गाड़ियों में पनाह ले रहा है।
इन्सान देखो कहाँ चल रहा है।
मृत्यु से बच कर भागे जा रहा है,
लाखों के संसर्ग में चला जा रहा है।
जीवन लालसा में,
अपने संग मृत्यु का लक्ष्य पा रहा है।
इन्सान देखो कहाँ चल रहा है।