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Kahkashan Danish

Tragedy

4.0  

Kahkashan Danish

Tragedy

लगता है.........

लगता है.........

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हमने ज़हर हवाओं में है घोला,

लगता है... फूट-फूट के धरती रो रही है।

हमने शोर मचाया इतना अंजाने,

लगता है.... अब सांसे अपनी खो रही है।

हमने पानी ख़त्म किया,बर्बाद किया,

लगता है.......आंसुओं से ख़ुद को भिगो रही है।

हमने पेड़ गिराए हैं इस धरती के,

लगता है..... हरपल अब इक पौधा बो रही है।

हमने कब समझाया था अपनों को,

लगता है, बिखरे मोती माला के वो पिरो रही है।।

लगता है...........


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