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Rajesh Mehra

Romance Tragedy

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Rajesh Mehra

Romance Tragedy

अहसास

अहसास

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एक साथ खेले बचपन में

एक साथ बढ़े और पढ़े

ना कोई सीमा थी न कोई रोक टोक

खुश थे नहीं थी मन में कोई खोट

थोड़े बढ़े हुए तो कहा साथ मत खेलों

अब बढ़े हो गए हो थोड़ी दूरी ले लो

समझ नहीं आया क्या हो गया बढ़े होने पर

नहीं बताता था कोई थे हम निरुत्तर


आते जाते होती थी मुलाकात थोड़ी बात

डर फिर भी था क्योंकि थी जात समाज की बात

समझ आने लगा पर मन में दोनों के नहीं थी वो बात

मन था कि बस कहता आपस में करते रहे बात

लेकिन समाज जाति का डर था पर्याप्त


एक दिन कर दी उसकी शादी उससे पूछे बिना

ना कुछ होते हुए भी भविष्य उसका गया छीना

शायद लड़का था मैं इसलिए उसे सजा मिली

वो विदा हो जा रही मुझे रोते हुए मिली

पूछ तो लेते हम तो भविष्य का बना रहे थे किला

प्यार शादी ही नहीं होती मिलने पर जो तुमने दिया सिला

अरे जालिमों जाति समाज के नाम पर मत करो अत्याचार

एक सुनहरे भविष्य में तुमने कर दिया अंधकार



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