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Bhavna Thaker

Romance

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Bhavna Thaker

Romance

चित्कार

चित्कार

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चाहत के अस्ताँचल के पीछे छुपे 

दर्द को अर्घ्य दे जाओ 

लौटकर आ जाओ...!


इतनी तीखी बेरुख़ी मेरी हथेलियों के आकाश को जला देंगी 

तुम्हारी अर्थ हीन चुप्पी 

मेरे चित्कार को दोहरा जाती है..!

 

उम्मीदों के बीच गिरी 

आवाज़ लोहे सी बनकर हलक में चुन रही है गुस्से के रंग को 

ये आग सा रक्त रंग मेरे चेहरे पर मल कर तुम चले गए..!


ये रंग जला ड़ालेगा 

मेरे सपनो का सरमाया

एक सदा कारगर होगी किसी दिशा से पुकार कर देखो..!

 

तन्हाई के खामोश लम्हें से उलझती 

इस रिक्ता को साँसे दे जाओ 

मुझसे जुड़ा हर कोई रिक्त बन जाता है 

इस तन के अंधेरे में कितनी वेदनाएँ करवट लेते ठहर गई है..!


गतिशील तुम्हारी चाहत ज़मीन है मेरी प्रीत की तुम क्यूँ नहीं समझते

तुम एक सार्थक छाँव हो इस तप्त तन-मन की..!


तलब करें जो तू कभी मैं अपनी आँखें भी तुमको दे दूँ,

तो क्या हुआ की मैं अब तेरी निगाह में नहीं,

किसी और की चौखट का तू चाँद सही पर मेरी तो रूह में तू बसता है।


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