बदलती रूत
बदलती रूत
पलाश के फूलों सा सुर्ख तेरा आंचल लहराने दे जरा
गहरे गमगीन से इस माहौल को उड़ जाने दे जरा
वो रंग जो तेरी आँखों के किनारे पर खूब फबता है
जंचता कहाँ,कुछ ज्यादा ही फैला है इस ज़माने में ज़रा
हाथों में सजी सभी चूड़ियों को उतार दे कुछ दिन
सुना है इक साया है ना देखे वो लाल या हरा
नीम फूल से नाजुक है हालात आजकल, मगर
इनसे ही समझ पाएँगे ,वो पहलू ,खोटा या खरा
बदलती रूत की तरह कुछ रंग अपने भी बदल लें
कायम रहेगा हुस्न औ इश्क , कि है एक नूर से उठा