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Sheetal Dange

Abstract

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Sheetal Dange

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अधूरा कौन

अधूरा कौन

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नीम पेड़ की, ऊपरी डाल की ,ओट में 

छिपे चाँद को आज मैंने छेड़ दिया । 

उल्हाना दे के, उसके अधूरेपन का

मैंने झूठी मुठी मूंह फेर लिया ।।


तिरछी नजर से देखा तो वो ऊपर थोड़ा और था ।

मुस्कुराहट उतनी ही थी,बात पर मेरी गौर था ।।

सुनने को तैयार लगा तो ,बातों से उसको घेर लिया ,

....ओट में छिपे चांद को आज मैंने छेड़ दिया ।।


चार दिन पहले की जो पूनम की रात थी ,

क्या जलवे थे तुम्हारे , क्या बात थी !

चमक चांदनी कुछ फीकी क्या हुई सारे जगत ने गैर किया ।

....ओट में छिपे चांद को आज मैंने छेड़ दिया 


कहते कहते मन तो मेरा भी पसीज गया था ;

देखा, चांद हंसता रहा , एक नन्हे तारे के और समीप गया था ।

देखते ही देखते बहुत से तारों ने उसे घेर लिया 


फिर बोला चंदा, मेरी प्यारी, स्रष्टी में अधूरा कौन है !

ये तो तुम दुनियावालों के देखने का दृष्टिकोण है ;

मैं वही हूं , पूरा का पूरा , बस दुनिया ने है बुद्धि को अंधेर किया 


तारों में हंसते चांद को इस बार जब निहारा 

अपना ही तर्क ना था अब खुद मुझे गवारा 

मैं भी थी अब सम्पूर्ण , मन पे छाई रात को सवेर किया ।।



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