तजुर्बो के निशाँ
तजुर्बो के निशाँ
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टेढे मेढे हैं मेरे कदमों के निशाँ
ना सोच के असर कर रहा है नशा ॥
उठा पटक ये ज़िन्दगी की है
कहलाने को इसका नाम है तजुर्बा ॥
कहीं गिरने के ज़ख्म हैं गहरे
कहीं गढ़ी एड़ियाँ ! वहाँ थे ठहरे ॥
कहीं फिसले, कहीं लंबे कदम भी हैं
कहीं के निशां मिटा गई हालातों की लहरें ॥
वक़्त की रेत पर इबारतें लिखी हुईं
कुछ भी हो ये सफर रहा बहुत हसीं॥
पर ध्यान रख मुसाफिर आखिर तो रेत ही है
ये निशां मेरे सदा के लिए नहीं ॥