प्यार का रंग
प्यार का रंग
जिन्दगी के प्याले को कहीं छलकाते कहीं भरते रहे
ऐ खुदा तेरी खुदाई में, बिन पीये हम बहकते रहे ॥
गुलों से, शूलों से, खाक ए गुलज़ार से भी की मोहब्बत
मिट्टी की सोंधी खुशबू से सदा महकते रहे ॥
प्यार का रंग ही था जो चढ़ा तो उतरा नहीं
मुलम्मे कई परत दर परत उतरते रहे ॥
इरादों की मजबूती से सख्त ना हो पाए, शायद
हर तंग राह में आब-ए नूर से बहते रहे ॥
बुर्ज औ इमारत कोई आलीशान सी ना बनी
हर सूँ दिलों के आशियाँ मगर सजते रहे ॥