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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

पुरुष का आंसू

पुरुष का आंसू

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पुरुष का आंसू होता बड़ा कीमती है

ये आंसू होता सीप का एक मोती है

उसे रोना आता है भले कभी-कभार,

पर अपने ग़मो को सहता है, हरबार,

ये आंसू होता दरिया की विनती है


पुरुष का आंसू होता बड़ा कीमती है

बाहर से भले ही वो कठोर दिखता है

भीतर से होता वो फूल की जिंदगी है

अब भला वो इल्ज़ाम किसको देगा,

सब रिश्ते ही होते उसकी जिंदगी है

स्त्रियां रोकर गम दूर कर लेती है,

पुरुष हंसकर अपना गम छिपाता है,

पुरुष का वो आंसू बेचारा क्या करे,

वो दरिया का होकर भी सूखी नदी है

पुरुष का आंसू होता बड़ा कीमती है


वो ख़ुदा पुरुषों को अच्छे से जानता है,

पुरुष के आंसू करते है, सच्ची बंदगी है

बाहर से वह बहुत ही अच्छा दिखता है

पर भीतर से पुरुषों की रूह जलती है

ये पुरुषों का आंसू यूँही नहीं बहता है,

ये जब भी बहता हज़ार गम कहता है,

ये आंसू नहीं इनके भीतर की अग्नि है

इसलिये ये बात कह रहा है, साखी,

सुन लो सकल यहां की पुरुष जाति,

मत बहा तू आंसू, ये हृदय का अंगार है

ये आईने नही समझेंगे, ये टूटे हुए हार है


वो ख़ुदा ही तेरा दर्द जान सकेगा, साखी,

वो ही पूर्ण पुरुषों का यहां जानकर है

ये आँसू हर जख़्म की अनमोल निधि है

पुरुष का आंसू होता बड़ा कीमती है


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