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Rajeev Rawat

Tragedy

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Rajeev Rawat

Tragedy

विलेन--दो शब्द

विलेन--दो शब्द

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जिंदगी के

नाट्य मंच पर

न जाने कब हम विलेन बन जाते हैं-

कभी स्वार्थ, कभी लालच

और कभी उन्नति के पायदान पर

गलत रास्ते पर चले जाते हैं-


उस समय

कहां हम देखना चाहते हैं सत्य, 

सत्य की परिभाषायें हम खुद गढ़ लेते है-

कुमार्ग के मार्ग को

अपनी सफलता का मानदंड समझ लेते हैं--


और

किसी की चाहत में

बिना सोचे समझे इतने हो जाते हैं गुम,

कि मोहब्बत के मायने भी बदल जाते हैं-

कभी कभी

अनजाने ही अपनी मोहब्बत को

पाने की जद्दोजहद में उसका मोल भी लगा आते हैं-


सब कुछ 

निकल जाता है

फिसलकर हाथ से अपने

और हम खाली हाथ रह जाते हैं-

जिंदगी के

नाट्य मंच पर

न जाने कब हम विलेन बन जाते हैं-

कभी स्वार्थ, कभी लालच

और कभी उन्नति के पायदान पर

गलत रास्ते पर चले जाते हैं-


मां-बाप के

अपनी नजरों के देखे सपने होते हैं-

हमारे अचानक मझधार छोड़ कर दूर जाने से 

उनके दिल भी रोते हैं--


जिन्होने दी 

होती है परवाज हमारे पंखो को--

जिन्होने पसीने की बूदों से रचा होता है 

हमारा भविष्य के रंगो को--


उनकी सूनी 

आंखों में जलते बुझते 

आशाओं के जुगुनू नजर आते हैं--

जिंदगी के

नाट्य मंच पर

न जाने कब हम विलेन बन जाते हैं-

कभी स्वार्थ, कभी लालच

और कभी उन्नति के पायदान पर

गलत रास्ते पर चले जाते हैं.

    



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