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Bhavna Thaker

Tragedy

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Bhavna Thaker

Tragedy

कितनी बार दर्द चखूँ

कितनी बार दर्द चखूँ

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लहरें उठती है आसमान सी ऊँची

जीवन का दरिया बड़ा असीम है 

तट नहीं कोई महफूज मेरे हिस्से का 

कहाँ बैठकर खुशियों की राह तकूँ।

 

हर तरफ़ बीहड़ जंगल है शोर का नहीं कोई

शामियाना शीत फूलदल का 

जहाँ सो कर सुकून के कतरें बटोर सकूँ।

 

है ज़िंदगी तो ऐसी ज़िंदगी क्यूँ है

कट तो रही है ज़ालिम सिर्फ साँस लेने की

रिवायत जारी है 

हंसी के बंज़र बादलों को कहाँ ढकूँ।


कहाँ सबको सब कुछ मिलता है

यहाँ लकीरों के धनी में हम कहाँ आते है 

मुट्ठी में कैद सपनों की बदबूदार लाशों को कहाँ रखूँ। 


मीठा आबशार तो कभी मिला नहीं

मिलती है हर बार कड़वाहट की किरकिरी  

ज़ायका दिल की जुबाँ का उब चुका है

और कितनी बार दर्द चखूँ।



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