फ़र्क
फ़र्क
एक मायका है इसका
और है एक ससुराल भी।
दायरा भी बड़ा है इसका
और है इसकी दुनिया भी विशाल सी।
कहने को दो-दो घर हैं
पर हक़ हो इसका जिस पर
ऐसा इसका कोई घरबार नहीं।
ज़िम्मेदारियाँ सब इसके हिस्से हैं
पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं।
धरती का प्रतिबिंब है ये
सहती सबका भार यही।
हाशिये पर रहती हमेशा
पहचान इसकी कोशिशों की
इसको कहीं मिलती नहीं।
आँखों में दर्द, ममता हृदय में
और चेहरे पर मुस्कान
यही है इसकी पहचान।
कहने को इसी का सब कुछ है
पर इसके खुद का कहने का
शायद कुछ भी नहीं।
बहुत फर्क है कहने में
और उस कथनी के सच होने में।
सच तो है यही कि,
परिवार इस से ही है
बिन इसके परिवार, परिवार नहीं।