कैलेंडर
कैलेंडर
आज नज़र जो मेरी
दीवार पर लटके कैलेंडर पर गयी।
एक पूरा साल
मेरे हाथों से फिसलता नज़र आया।
एक सैलाब, जो दबा था
दिल के कोने में कहीं
कुछ लबों पर सज गया मुस्कान बन के,
कुछ आँखों से छलकता नज़र आया।
साल के आगाज़ पर
जो ख्वाब सजाए थे मन में
कुछ टूट गए, कुछ बिखर गए
कुछ पूरे भी हुए इस जीवन में
आशा और निराशा का
मिला जुला सा भाव रहा
बहुत कुछ मिल भी गया
बहुत कुछ का अभाव भी रहा।
समय का चक्र तो
चलता ही रहेगा अनवरत।
एक तरफ एक साल की
हो रही विदाई
दूसरी तरफ एक नए साल का
करना है स्वागत।
अधूरे ख्वाबों में जगी
फिर से एक नयी आस है।
नए साल में बहुत कुछ,
कर गुजरने की प्यास है।
बहुत आपाधापी रही बीते साल में
नए साल में कुछ सुकून की तलाश है।