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Sulakshana Mishra

Abstract

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Sulakshana Mishra

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शब्द

शब्द

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कुछ भूल नहीं पाती मैं

जाने क्यूँ शब्द सभी,

दिल में गहरे बस जाते हैं।


जो शब्द कहे ग़ुस्से में तुमने

वो कानों में गूंजा करते हैं

उन शब्दों के कोलाहल से

हम इधर-उधर बचते फिरते हैं।


कभी जो शब्दों से की तुमने

प्यार भरी कुछ बातें,

वो शब्द भी तो रह रह कर

मेरे गालों की लाली बनते हैं।


शब्दों को कमतर न जानो

बनते भी इनसे कभी रिश्ते प्रगाढ़।

कभी शब्दों के ही कारण

हो जाते रिश्ते निष्प्राण।


शब्दों से सजती मुस्कान

आँसू भी शब्दों का ही प्रभाव।

शब्दों में ही मरहम है

शब्दों से ही मिलते घाव।


शब्दों का जब करें चुनाव

मन में रखें पावन भाव।

वक़्त और हालात का भी 

गज़ब है चलता खेल


कभी चुन लेते हम शब्द बेमेल

कभी रह जाते हम निःशब्द।


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