पुरूष और नारी
पुरूष और नारी
जब अपनी आवाज़ ऊँची करते हो
कद अपना नीचा कर लेते हो।
जब भाषा हो जाती है अभद्र
कहीं दिल के किसी कोने में
थोड़ी कम हो जाती है तुम्हारी कद्र।
जब हाथ तुम्हारा उठता है
तब यक़ीन मानो
दिल पर पत्थर से वार हो जाता है।
पुरूष हो तुम
तुमको इस नारी ने ही जन्म दिया
पर क्यूँ तुम नारी पर पर ही
इतने अमानुष हो जाते हो ?
क्यूँ तुम अपने उद्गम को ही भूल जाते हो ?
क्यूँ साबित करनी है तुमको अपनी प्रभुता?
नारी और पुरूष,
दोनों से मिलकर ही बनती है
इस संसार की सत्ता।
नारी और पुरूष तो
पूरक हैं एक दूसरे के
प्रतिद्वंद्वी नहीं।
साथ चलने की बात है
आगे निकलने की होड़ नहीं।
है जीवन का सत्य यही
अगर नारी नहीं है पुरूष से बेहतर
बेहतर तो पुरूष भी नारी से नहीं।
कुछ खूबियाँ हैं पुरूष में
खूबियाँ कम तो नारी में भी नहीं।
एक दूसरे से मिल कर ही
सुंदर सजता है संसार।
अकेले अकेले कोई कुछ भी नहीं।