Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Sulakshana Mishra

Abstract

4.5  

Sulakshana Mishra

Abstract

पुरूष और नारी

पुरूष और नारी

1 min
319


जब अपनी आवाज़ ऊँची करते हो

कद अपना नीचा कर लेते हो।

जब भाषा हो जाती है अभद्र

कहीं दिल के किसी कोने में

थोड़ी कम हो जाती है तुम्हारी कद्र।

जब हाथ तुम्हारा उठता है

तब यक़ीन मानो

दिल पर पत्थर से वार हो जाता है।

पुरूष हो तुम

तुमको इस नारी ने ही जन्म दिया 

पर क्यूँ तुम नारी पर पर ही 

इतने अमानुष हो जाते हो ?

क्यूँ तुम अपने उद्गम को ही भूल जाते हो ?

क्यूँ साबित करनी है तुमको अपनी प्रभुता?

नारी और पुरूष,

दोनों से मिलकर ही बनती है

इस संसार की सत्ता।

नारी और पुरूष तो

पूरक हैं एक दूसरे के

प्रतिद्वंद्वी नहीं।

साथ चलने की बात है

आगे निकलने की होड़ नहीं।

है जीवन का सत्य यही

अगर नारी नहीं है पुरूष से बेहतर

बेहतर तो पुरूष भी नारी से नहीं।

कुछ खूबियाँ हैं पुरूष में

खूबियाँ कम तो नारी में भी नहीं।

एक दूसरे से मिल कर ही

सुंदर सजता है संसार।

अकेले अकेले कोई कुछ भी नहीं।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract