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Sulakshana Mishra

Abstract

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Sulakshana Mishra

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उमंग और जीवन

उमंग और जीवन

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सिर्फ साँसों के आने जाने को

कैसे जीवन का नाम मैं दूँ ?

जो उमंग न हो जीने की

तो जीवित होने का

प्रमाण मैं कैसे दूँ ?

बेनूर बेरंग सा होता ये जीवन

नीरस सा रहता हर पल मन

जो न होती जीवन में

जीने की उमंग।

कुछ करने की ठानी 

जब जब मन ने

कुछ कर पाया मानव

जब साथ दिया उमंग ने।

है इतिहास गवाह इस सत्य का

उमंग ही अभिप्राय है जीवन का।

जब मन में घिर आती बोझिलता

उमंग से मिलती आगे बढ़ने की प्रेरणा।

है उमंग और जीवन का

बस इतना सा नाता

उमंग बिन जीवन, जीवन न कहलाता।



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