आँख-मिचौली
आँख-मिचौली
बहुत बड़ा दिल होता है माँ-बाप का
जो बेटी अपनी,कन्यादान में दे देते हैं।
मैंने देखे हैं वो लोग भी
जो जब देते हैं
अपनी बगिया से एक फूल भी,
तो कलेजा थाम लेते हैं।
बहुत अदाकारी का हुनर
बेटियों में भी होता है।
समंदर आँखों में उमड़ता है
मगर ज़ुबान पर कभी भी
दर्द-ओ-ग़म की
एक बून्द भी नहीं छलकती।
बेटियां सब सह कर भी
खुद को सुखी बताती हैं।
माँ-बाप भी सब समझकर
अनजान ही दिखते हैं।
बेटी बाप से दर्द छुपाती है
बाप की बेबसी भी
कब बेटी से छुप पाती है?
दिल न दुखे एक दूसरे का
बस इसी उम्मीद में दोनों ही
आँख-मिचौली के नित नए
आयाम गढ़े जाते हैं।
दर्द बाप को हो तो आँसू
बेटी की आँखों से बह जाते हैं।
बेटी के तो दर्द के ख़याल से ही
बाप के हाथ-पाँव कांप जाते हैं।
मायके से ससुराल चली जाती हैं
दुनिया की नज़र में
होती होंगी परायी बेटियाँ
पर जब भी झांकोगे
दिल में एक बाप के
वही मुस्कुराती हुई
मिल जाएंगी बेटियाँ।