एक गर्म चाय की प्याली
एक गर्म चाय की प्याली
सुबह सवेरे सबसे पहले
तलब तुम्हारी लगती है।
तुम्हारे बिना मेरी सुबह भी
कहाँ सुबह जैसी लगती है।
कहने को तो तुम
सिर्फ एक गर्म चाय की प्याली हो।
पर यक़ीन मानो लगती
तुम मेरी कोई हमख़याली हो।
वो जो धुँआ तुममें से उड़ता है
उसी धुएँ के साथ ही
ग़ुबार मेरे दिल का भी उड़ जाता है।
जब तक रहता है
मिज़ाज तुम्हारा गर्म
तुम गर्माहट मुझमें भर देती हो।
तुम्हारी सर्द मिज़ाजी
मुँह का ज़ायका ही
बेस्वाद सा कर देती है।
कहने को तो तुम
सिर्फ एक गर्म चाय की प्याली हो।
पर जाने अनजाने ही सही
सिखा देती हो तुम
एक बात निराली हो।
सिखा देती हो तुम कि
लुत्फ़ ले लो ज़िंदगी का
कि जब तक है जोश
जीने का बाकी।
एक बार जब निकल जाती है उम्र
तो चाहे जितनी हो उम्र बाकी
वो लुत्फ़ लेने के लिए
रह जाती है नाकाफ़ी।