राणा का बलिदान
राणा का बलिदान
नमन करें हम शौर्य पुत्र को
उनके स्वाभिमान को।
याद करें हम मिलकर सारे
राणा के बलिदान को।।
मुगलों की ताक़त को जिसने
बार बार ललकारा हो,
मातृ भूमि की रक्षा हेतु
हिम्मत कभी न हारा हो।
घुड़ सवारी,तलवार चलाना
सिख लिया था बचपन में,
राष्ट्र भक्ति,साहस पराक्रम
था समाया तन मन में।
नमन करें हम हल्दी घाटी को
समर के उस मैदान को
याद करें हम....
राणा की हुंकार गूंजती
यारो नील गगन में,
लहराती जब विजय पताका
रण के मस्त पवन में।
महाराणा का हरदम प्यारा
राम प्रसादी हाथी था,
स्वामी भक्त चेतक भी यारो
घोड़ा अनोखा साथी था।
श्रद्धा सुमन चदाएं मिलकर
वीरों की संतान को।
याद करें हम....
आ जाता भूचाल धरा पर
शत्रु सेना घबराती थी,
राणा की तलवार चंडिका
लहू से प्यास बुझाती थी।
मातृ भूमि का मान बढ़ाया
राणा ने तो जन जन में,
सच्चा सुख राणा को मिलता
सेवा, त्याग, समर्पण में।
आज चाहिए फिर से राणा
मेरे हिंदुस्तान को।
याद करें हम....
भूल गए इतिहास को सारे
आज हमे दोहराना है,
राष्ट्र भक्त को फिर से यारो
एक सूत्र में आना है।
अभी वक्त है संभलना होगा
वरना फिर पछताना है,
इतिहास के पन्नों में ही यारो
सिमट के फिर रह जाना है।
क्या हम सारे भूल गए हैं
मुगलों के अपमान को।
याद करें हम.....
आपस में ही लड़कर यारो
ताक़त अपनी खोई है,
अहंकार का विषपान कर
फ़सल तुम्हीं ने बोई है।
वीरों की है वसुंधरा ये
इसकी शान बढ़ाना है,
हंसते हंसते मातृ भूमि को
अपना शीश चदाना है।
फिर से आज बनाना होगी
खोई हुई पहचान को।
याद करें हम....
