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Lalita sharma नयास्था

Abstract

4.7  

Lalita sharma नयास्था

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जब तक न लिखूँ कविता -गीत

जब तक न लिखूँ कविता -गीत

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जब तक न लिखूँ कोई कविता, दिवस अधूरा मन रूठ रहा है। 

छंद विधा हो या गीत ग़ज़ल, रचना में कुछ तो छूट रहा है।। 


गीत लिखूँ तो विधा नहीं, ग़ज़ल लिखूँ तो बहर नहीं है। 

कविता में आते भाव नहीं, छंदों का पूरा ज्ञान नहीं है। 

फिर भी सब-कुछ कह-लिखने को, आतुर मन हरपल हूक रहा है। 

जब तक न लिखूँ कोई कविता, दिवस अधूरा मन रूठ रहा है।। 


सुख-दुःख चाहे कुछ भी आये, अंतःकरण में आराम नहीं है। 

मार फलाँगे आये-जाये, अवलेखा करें विश्राम नहीं है। 

तडफ़ रहा सब कुछ लिखने को, पर शब्द समन्वय टूट रहा है।

जब तक न लिखूँ कोई कविता, दिवस अधूरा मन रूठ रहा है।।


लिखने को फिर भी लिख लूँ, पर गाने की कला नहीं है।

शब्दों में स्वर-सहजता नहीं, है कंठ मिला पर गला नहीं है। 

मंज़िल पाने को ये तन-मन, सभी प्रयास कर अटूट रहा है। 

जब तक न लिखूँ कोई कविता, दिवस अधूरा मन रूठ रहा है।। 


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