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Priarsh Rai

Abstract

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Priarsh Rai

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ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

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अपने आप के लिए भी वक्त नहीं, ज़िंदगी तु कितनी व्यस्त है।

मां की लोरी का एहसास है पर, मां को मां कहने के लिए वक्त नहीं।

पिता की मेहनत और उनकी उम्मीदों का एहसास है पर,

उनके संग बिताने को दो पल का वक्त नहीं।


हर खुशी है दामन में पर , दौड़ती दुनिया में जिंदगी के लिए वक्त नहीं। 

दोस्तों के नाम हैं मोबाइल में मगर, दोस्तों के लिए वक्त नहीं।

गैर लोगों की बात क्या करे, जब अपनों के लिए ही वक्त नहीं।

धन दौलत और पैसों के लिए ऐसे दौड़े की, थकने के लिए भी वक्त नहीं।


पराए एहसाओं की कैसे कदर करें, जब अपने सपनों के लिए ही वक्त नहीं।

मन तो बातों से भरा है, मगर बातें बताने को वक्त नहीं।

जिंदगी तू कितनी व्यस्त है कि, अपने आप के लिए भी वक्त नहीं।


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