चाँदनी चाँद से लाज रखने लगी
चाँदनी चाँद से लाज रखने लगी
बेख़ुदी आज हद पार करने लगी।
चाँदनी चाँद से लाज रखने लगी।।
गेसुओं को न यूँ ज़ोर-से झटकिये।
आशक़ी आपसे और बढ़ने लगी।
फूल-से मख़मली आप हो हमनशीं।
ज़िंदगी राह पे और चलने लगी।
कारवाँ ये चलेगा तभी ज़हनशीं ।
साथ जो तुम रहो प्यास बढ़ने लगी।।
ख़ामख़ां राज़ को यूँ न खोलिए।
गुफ़्तगू अब नयीं चाल चलने लगी।।
शौख़ अंदाज़ सब कर गया बयाँ।
राजदाँ रात यूँ आम करने लगी ।
आशियाँ प्यार का इक नया कद्रदाँ।
आरज़ू कहकशां शोख़ रखने लगी।।