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Lalita sharma नयास्था

Inspirational

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Lalita sharma नयास्था

Inspirational

पिता न बन पाने का दुःख

पिता न बन पाने का दुःख

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रोज़ माँगते हैं दुआ मगर अब तक त्रास कुँवारी है ।

आतुरता स्व-प्रतिबिंब पाने की अब तक आस कुँवारी है।


कहूँ किससे मैं अपनी पीड़ा, तन मन पित्र जो ठहरा।

कहने को हूँ वज्र मगर रोज़ सहता वज्रपात गहरा।

अलि, मिलिंद, शिलीमुख गूंज आँगन की साँस कुँवारी है।

आतुरता स्व-प्रतिबिंब पाने की अब तक आस कुँवारी है।


देता हूँ संबल स्वयं के मुखड़े पे मुखौटा डाले। 

जगत में पुरुषत्व का प्रभाव सबके सम्मुख संभाले।

मंदिर, मस्जिद, गिरिजा घर, गुरुग्रंथ की उजास कुँवारी है।

आतुरता स्व-प्रतिबिंब पाने की अब तक आस कुँवारी है।


मानस में प्रवाहित अनुगूँज करें जो स्पंदन-संचार।

ललना, माधव, केशव बालरूप अंतर्मन की झनकार।

अंगना में शक्ति स्वरूपा मधुमास कुँवारी है।

आतुरता स्व-प्रतिबिंब पाने की अब तक आस कुँवारी है।



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