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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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मिलने से डरता हूं

मिलने से डरता हूं

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तुम्हारे लिए मेरे मन में 

प्यार दुलार सम्मान पवित्रता

और अपनापन भी है

फिर भी तुमसे मिलने से डरता हूं,

तुमसे नहीं तुम्हारी निश्तेज आंखों से डरता हूं


तुम्हारे चेहरे पर छाई मायूसी से डरता हूं,

तुम्हारे मौन से डरता हूं।

तुम्हारे मन में छिपे दर्द से डरता हूं

तुम्हारे मन के गुबार के बाहर आने से डरता हूं।


मुझे पता है तुम्हारे मन की वो पीड़ा

जिसे तुम बाहर लाना नहीं चाहती

शायद अपने आंसू हमें दिखाना नहीं चाहती हो,

या अपने मजबूत हौसले हमें ही नहीं

सारी दुनिया को दिखाना चाहती हो,


या मेरे आंसुओं की कल्पना भर से

तुम जहर का हर घूंट खुद पीकर भी

बहुत खुश रहना और दिखना चाहती हो,

अथवा रिश्ते की मर्यादा को

ऊंचाइयों पर ले जाना चाहती हो।


जो भी है, हमसे सच रोज छिपाना चाहती हो

हमको टूटने बिखरने से बचाना चाहती हो

छोटी होकर भी बड़ी बनना चाहती हो।

मुझे पता है मेरे हर सवाल से बचना चाहती हो

शायद अंधेरे में रखकर हमें


खुश देखना चाहती हो,

पर शायद मेरे मन की पीड़ा को

समझ नहीं रही हो तुम,

इसलिए तुम्हारे सामने आने भर से ही नहीं

तुमसे मिलने से भी डरता हूं,


तुम समझती हो इसी में मेरी खुशी है

तो तुम्हारे विश्वास का खून 

मैं खुद नहीं करना चाहता हूं

इसलिए तुमसे बहुत दूर रहता हूं

तुमसे मिलने में डर लगता है

बस ! इसी भ्रम के सहारे 

तुम्हारी खुशियों के लिए दुआएं करता हूं। 


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