रात और दिन
रात और दिन
काली अँधेरी रात और खिड़की से झाँकता चाँद,
बोलता जरा सुस्ता लो दिन भर के थकान के बाद,
कल फिर सुहानी सुबह होगी रवि किरणों के संग,
और होगा उम्मीदों के संग नये दिन की शुरूआत।
काली अँधेरी रात का घना साया देखो मिटेगा,
नाउम्मीदी की कालिमा मन से है जरूर छंटेगा,
मन हमारा रोशन होगा आस के उजाले से ,
जिंदगी नई शुरूआत कर जीवन को रंगीन करेगा।
सूरज भी सुस्ता रहा है दिन के थकान के बाद,
चाँद भी पर्दा तोड़ सारे बाहर आकर खुश होगा,
तारों के संग मिलन हो एक नई कहानी वो गढ़ेगा,
चाँद रात को रोशन कर मन को जरा राहत देगा।
छोड़ो रात की पुरानी बातें चलो नई शुरूआत करते,
खुशनुमा दिन के संग सूरज से कुछ बातें करते,
हो गया है सवेरा चलो बहुत विश्राम कर लिया,
नये तरीके से चलो नई तारीखों को बदलने की बात करते।