जीवन का गणित ,, प्रॉम्प्ट १९
जीवन का गणित ,, प्रॉम्प्ट १९
पहली सांस, पहली रुलाई
पहला दूध का दांत
पहली पोपली हंसी
पहले तोतले शब्द का मुंह से फूटना
पहले क़दम का उठना
पहली बार गिरना, गिरकर सम्हलना !
पहले की सूची में
अनजाने ही जुड़ते गए
दो और तीन
चार और पांच और ...
पिछला सब धुंधलाता गया
अगला साथ होता गया
जीवन
उलझता गया अंकों में
जोड़, घटा, गुणा, भाग की
पहेलियों में
समीकरणों के चक्रव्यूह में।
पल - पल की जद्दोजहद में
आदमी
तराज़ू के पलड़ों में तुलता रहा
शिखर की चाह में
सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ता रहा
' पहले ' रहने का मोह आदमी को
आगे को ठेलता रहा।
पल भर में
दो और दो पांच हो गए हैं
शिखर पर
अचानक
सारे अनबूझ समीकरण
मानो, पारदर्शी कांच हो गए हैं।