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Dr. Anu Somayajula

Abstract

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Dr. Anu Somayajula

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पैसा उग पाता प्रॉम्प्ट ३१

पैसा उग पाता प्रॉम्प्ट ३१

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ऐसा यदि हो पाता

सिक्कों का पौधा बोतल में उग पाता !

रोज़ देखते

जड़ों को सिक्का बनते

भर जाती बोतल

सुनहरे, रुपहले सिक्कों से 

जब मर्जी निकालते

झट भर जाती

कभी न खाली होती बोतल सिक्कों से

ऐसा यदि हो जाता !


ऐसा यदि हो पाता

आंगन में उगता इक पेड़ घना

शाखों पर 

नोटों के पत्ते होते

हरे नहीं केवल

पीले, नारंगी, नीले रंगों वाले भी पत्ते होते

जितने चाहो

डाल हिलाते, नीचे गिरते 

बारिश में गलते

कड़ी धूप में सूखा करते

पतझड़ के मौसम में

आंधी - तूफां में 

झर - झर झरते 

नोटों की बारिश होती आंगन में

ऐसा जो हो जाता !


होता यदि ऐसा, तो

दिन रात की हम सुध खोते

हिलते पत्तों से

डुलती शाखों से

हर हल्की सी आहट से

चौंका करते, डरते

नित पेड़ तले बैठे पहरा देते

पैसों के बदले में

अपना सुख - चैन भुनाते

ऐसा ही होता

यदि पेड़ों पर पैसा उगता।


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