STORYMIRROR

Dr. Anu Somayajula

Abstract

4  

Dr. Anu Somayajula

Abstract

कीमियागर

कीमियागर

1 min
249

अक्सर देखा करते

अर्जुन के धनुष से छूटे बाण सा

फर्राटे से आसमान नापता

बादलों को चीरता

' रॉकेट ' 

पीछे छोड़ जाता

टूटता, बिखरता दूधिया धुंआ।


दीवाली पर छोड़ा करते

लंबी, पतली डंडी के सिरे पर बंधा

छोटा सा रॉकेट

अपनी ही आंच से घबराकर

सुरसुराता हुआ आसमान में उठता

कुछ रोशनी, कुछ चिनगारियां बिखेरता

अगले ही पल

धराशायी हो जाता

पीछे छोड़ जाता बारूद की गंध

और अपना कंकाल ।


सुदूर गुफा में बैठा कीमियागर 

विस्मित होता

क्षण भर की इन खुशियों पर।

तनिक रुको

इतने पर ही ना इतराओ।

कुछ बूटी, कुछ औषधि डालूं हंडी में 

फ़िर छितरा दूंगा

धरती पर, अंबर में 

शत - शत दीपों से ज्योतिपिंड बिखरेंगे

न धुआं न कोई गंध रहे

सदा दिपेंगे

पीछे छोड़ जाएंगे निर्मल उजास।


   


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract