कीमियागर
कीमियागर
अक्सर देखा करते
अर्जुन के धनुष से छूटे बाण सा
फर्राटे से आसमान नापता
बादलों को चीरता
' रॉकेट '
पीछे छोड़ जाता
टूटता, बिखरता दूधिया धुंआ।
दीवाली पर छोड़ा करते
लंबी, पतली डंडी के सिरे पर बंधा
छोटा सा रॉकेट
अपनी ही आंच से घबराकर
सुरसुराता हुआ आसमान में उठता
कुछ रोशनी, कुछ चिनगारियां बिखेरता
अगले ही पल
धराशायी हो जाता
पीछे छोड़ जाता बारूद की गंध
और अपना कंकाल ।
सुदूर गुफा में बैठा कीमियागर
विस्मित होता
क्षण भर की इन खुशियों पर।
तनिक रुको
इतने पर ही ना इतराओ।
कुछ बूटी, कुछ औषधि डालूं हंडी में
फ़िर छितरा दूंगा
धरती पर, अंबर में
शत - शत दीपों से ज्योतिपिंड बिखरेंगे
न धुआं न कोई गंध
सदा दिपेंगे
पीछे छोड़ते जाएंगे निर्मल उजास।