पुष्पांजलि
पुष्पांजलि
पुष्पांजलि विभोर भई तितली आत मतवाली
जगत सुगंध बहती गंगा सी जब है इठलाती
प्रन्नचित अद्बुत छवि मनोहर हर नज़र ललचाती
तितली की भेंट अक्सर रंग नए दिखलाती
पुष्पांजलि विभोर भई तितली आत मतवाली
जगत सुगंध बहती गंगा सी जब है इठलाती
मन गुंजित बसंती बयार एक दूजे संग समाती
एक मीठा से चुम्बन देखे पुनः दूर उड़ जाती
पुष्पांजलि विभोर भई तितली आत मतवाली
जगत सुगंध बहती गंगा सी जब है इठलाती।