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Kalyani Nanda

Abstract

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Kalyani Nanda

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तितली सा मेरा ये मन

तितली सा मेरा ये मन

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ना जाने ये मेरा मन आज क्यों चंचल है

तितली की तरह पंख फैलाकर उडने का मन है।


विस्तृत नीले अम्बर में उडने को जी चाहता है

एक उमंग है ना जाने ये कैसी चाह है

ऐ हवा आज तू मेरे मन को पंख दे दे

मैं भी उड चलूँ तेरे साथ इस नीले गगन में।


ये चमन मुझे क्पों पुकारे ?

बागों के फूलों की खुशबू मुझे मदहोश कर रही है

तितली भी देखो फूलों के प्रेम में खो सी गयी है

पागलों की तरह हर एक फूल से प्रेम जता रही है

क्या मुझे भी तितली की तरह इश्क हो गया है ?

ना जाने आज मेरा मन विक्षिप्त क्यों हुआ जा रहा है।


ऐ तितली दे दे मुझे तेरी ये रंग बिरंगी पंख

उड सके ये मेरा मन जहाँ चाहे उस ओर

तितली की तरह उडूँ मैं चारो ओर।

ऐ मेरा मन धीरज धर ना होना तू चंचल

तितली न है तू बावरा क्यों हो रहा है ऐ मेरा मन

कहीं तू राह ना भटक जाए भूल ना

जाए किस ओर है तेरा पथ

थोड़ा धीरज तो धर ले ऐ मेरा बावरा मन।


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