…..साबरमती का संत….
…..साबरमती का संत….
अहिंसा का था वो पुजारी, सत्य था उसका शस्त्र,
मौन को ढाल बनाकर चल पड़ा था वो संत,
देख कर विश्वास उसका दुश्मन रह गये दंग,
ऐसा था वो भारत माता का सीधा सादा संतान,
जिसके साथ थे अनगिनत भारत मां के वीर सपूत,
आजादी के लिए बांधे थे जो सिर पर कफ़न ।
ना थे कोई अस्त्र, ना की थी कोई हिंसा के जंग,
आत्मविश्वास था दृढ़, निकल पड़ा वो संत,
उर में लेकर आजादी का दृढ़ संकल्प,
सत्य, अहिंसा का वह था भारत मां का सपूत,
आजादी की जिद दिल में लिए चल पड़ा था वो संत,
ना थी अपनी चिंता, ना मौत का भय,
सत्य, अहिंसा, धर्म के राहों का था वह पथिक,
खोल कर गुलामी की जंजीर, भारत मां को किया आजाद ।
"हे राम" था उसका अंतिम शब्द, था वो साबरमती का संत,
" बापूजी" थे हमारे, सत्य, अहिंसा था जिसका परम धर्म।