प्लास्टिक का कहर
प्लास्टिक का कहर
सागर की उफनती लहरें,
छल छल बहती नदियाँ,
हरी भरी जमीन,हरे हरे पेड़,
पौधों से सजी वादियाँ,
नीले नीले अम्बर के तले,
मन को लुभाती सुन्दर वसुंधरा।
वक्त बदला,बदली मानव सभ्यता
ज्ञान, विज्ञान की उन्नति से मानव का मन बदला
मानव को सुनहरे स्वप्न दिखाया,
मोह ग्रस्त मानव, स्वार्थ से अन्धे मानव,
बन गया दानव, बुद्धि का हुआ विनाश,
विज्ञान ने किया नया नया आविष्कार
पेड कटे, पर्यावरण को किया दूषित,
भूल गया मानव कि वो खडा है अब,
विध्वंस के दावानल पर, मृत्यु के कगार पर।
समस्त सुख, सुविधा की प्राप्ति,
नष्ट करदी उसकी मति,
सुख हुआ उसके जीवन का मुख्य ध्येय,
प्लास्टिक का उपयोग, हुआ उसका लक्ष्य,
भुला गया कि वही होगा एक दिन,
उसका विनाश का मूल कारण।
दूषित हुआ वातावरण,वायू हुआ विषमय,
स्वच्छ जल में घोल दिया जहर,
धरती पर प्लास्टिक ने मचाया कहर,
रक्तवीर्य का जैसे बना वंशधर,
एक से सौ की संख्या में,
बढ़ता गया ये प्लास्टिक का जहर,
स्वच्छ, सुन्दर बसुधंरा बन गयी जर्जर।