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Kalyani Nanda

Tragedy

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Kalyani Nanda

Tragedy

जीवन का आधार

जीवन का आधार

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पर्वत से निकल कर ,

प्रवाहित एक जल की धारा ,

पृथ्वी को करके सिक्त, मधुर,

बढ़ चली नदी का वह जल स्रोत ।


उन्मुक्त, छन्दमयी, उन्मादित,

कभी तीव्र, कभी मन्थर गति से धावित,

झरने से बन कर सरिता बढ़ चली सागर की ओर,

कहीं गंगा, कहीं गोदावरी,

कहीं नर्मदा, कहीं कावेरी ,

वसुधा को अपनी जल धारा से किया सिंचन,

धरती हुई हरियाली, फूलों से सजे धरती का

आंगन,

जीव जगत में किया प्राण का संचार,

आगे बढ़ चली नदी का धार।


मानव समाज हुआ सभ्य, शिक्षित,

किया नित नया आविष्कार,

करके जल स्रोत का उपयोग,

मानव हुआ कृतार्थ।

उन्नति की अदम्य इच्छा, आकांक्षा अनेक,

प्रकृति के जल संसाधन का किया दुरूपयोग ,

नर से बन गया नराधम,

अपने ही विनाश को किया आमन्त्रण,

दूषित हुआ वातावरण, दूषित हुआ जल,

भूल गया मानव कि जल ही है जीवन का आधार,

बना दिया जल को अमृत से जहर।



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