जा पंछी उड जा.... Prompt..15,
जा पंछी उड जा.... Prompt..15,
जा पंछी उड़ जा गगन में
कुछ नहीं धरा है इस धरा में।
ना है वो पेड़ जिस में कभी
बनाती थी तू अपना आशियाना
ना तो है वो लोगजो खुश होते थे कभी
देख कर तुझे दाना चूगना
जा पंछी उड़ जा गगन में
कुछ नहीं धरा है इस धरा में।
जहाँ देखो वहाँ है धुआँ धुआँ
मुश्किल है तेरे लिए राह ढूँढना
ना तो किसी के दिल में है दया संवेदना
ना है कोई प्यार की भावना
बस इन्सान की है ये एक शौक
पिंजरे में तुझे कैद करके रखना
ना है उसके कोई विचार विवेचना
इन्सान के वस्ती में ना है
कोई तेरा ठिकाना खुला है पिंजरा
जा पंछी उड जा गगन में
कुछ नहीं धरा है इस धरा में।
ऊँची मंजिलो का है घना जंगल यहाँ
ना है कोई पेड जहाँ तू बना सकती है बसेरा
इस जहाँ के रेगिस्तान में शहरों के शोरगुल में
भूल जाती है तू अपना ठिकाना
जा उड़ जा उस विशाल गगन में
बना ले अपना प्यारा सा आशियाना
सूरज की गर्मी है जहाँ चांद की चांदनी भी है वहाँ
आजाद पंछी है अब तू मुक्त है स्वच्छन्द है
सुन कर तारों के टिम टिम सूर
कभी तू थी इस धरा की यह भूल जाना
अनंत आकाश मुक्त स्वच्छ आकाश
वही है अब तेरा ठिकाना है बहुत लुभावना
जा पंछी उड़ जा गगन में कुछ नहीं धरा है इस धरा में।