कौन हूं मैं
कौन हूं मैं
कुछ टूटे फूटे शब्द लिए,
थोड़ा सा कुछ ज्ञान लिए,
अपनी मस्ती में रहता हूं,
मन में ईश्वर का ध्यान लिए।
सब कुछ तो उधारी का मुझपर,
मेरा है ही क्या जो इतराऊं,
तन मां से है, चेहरे में पिता,
और ज्ञान गुरु का मैं गाऊं,
हर क्षण कण कण में कम्पन है,
कैसी है ईश्वर की माया,
पंचभूत के मिलन से ही,
पाई मैने नश्वर काया,
लाखों वर्षों के अनुभव हैं,
मेरे शरीर के हिस्सों में,
मेरे पुरखे जो समझ दिए,
वही कह रहा किस्सों में,
मेरे भीतर जो लहर उठे,
उसका कारण भी है ईश्वर,
मेरा अस्तित्व नहीं कोई,
फिर कौन हूं मैं इस धरती पर?
