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Laxmi Dixit

Abstract Inspirational

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Laxmi Dixit

Abstract Inspirational

खुद की कदर कर

खुद की कदर कर

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रिश्तों को निभाने के फेर में

स्वयं के अस्तित्व को तूने

क्यों कर दिया दरकिनार।


कब तक अपने लिए ना जी कर

औरों पर करता रहेगा

तू अपने समय को बर्बाद।


क्या मन में पड़ी गांठ

भी कभी खुली है

आंखों में पड़ी लालच की धूल

भी कभी धुली है।


क्यों चिंतन छोड़ 

तू चिंता में तल्लीन है। 

वर्तमान की सुध भूल 

तू भविष्य के लिए गमगीन है।


माना कि यह दोपहर है

फिर भी तो आख़िर सहर है।

संघर्ष भले ही अविराम है

पर प्रगति पथ महान है।


चिलचिलाती धूप में

तन तेरा पसीने से तरबतर है।

पथरीले बीहड़ों में गिद्ध घूमते 

जहां तक जाती नज़र है।


तू छोड़ दे 

औरों के लिए जीना

अब खुद की कुछ ख़बर कर।


वो बहाएंगे नहीं

तेरे जनाज़े पर भी आंसू

तू अब खुद की कदर कर।


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