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Laxmi Dixit

Romance Classics

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Laxmi Dixit

Romance Classics

राधा और मीरा में विवाद

राधा और मीरा में विवाद

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राधा और मीरा में हुआ 

एक दिवस विवाद।


कान्हा मिला ज्यादा किसको 

शुरू हुआ संवाद।


राधा बोली मैंने कान्हा को 

पहले हाथ लगाया है।


बचपन हम दोनों ने

खेल कूद कर संग बिताया है।


उस चितचोर का चित्त लूटकर

प्रेम मैंने सिखाया है।


माखन चोर उस गिरिधारी को

मुरलीधर बनाया है।


मुझको है मालूम 

तुम भी उस पर मरती थीं।


थोड़ा सही पर चुपके चुपके

प्रेम मेरे ग्वाले से करती थीं।


गोपी थीं तुम वृंदावन की

कृष्ण प्रिया ना बन पाईं।


मेरे गोपाल को छीनने

हो रूप नया लेकर आईं।


बिना अनुमति मेरे प्रियतम की

तुमने उनको पति मान लिया।


है उस दिन विशेष से

मैंने रार तुमसे ठान लिया।


प्रेम तपस्या मैंने की

क्या तुमने प्रेम को पहचाना।


मेरे हृदय स्वामी को 

तुमने क्यों अपना माना।


तीखे वचन सुन राधा के

मीरा ना चुप रह पाई।


कहने लगी राधा से

अपने प्रेम की सच्चाई।


मां के उद्गार को मैंने

जीवन का सच था जाना।


बाल-काल से कृष्ण को

मैंने पति था माना।


प्रेम है क्या तुम क्या जानो

मैंने प्रेम का जोग लिया।


बिना विचारे दुनिया की रीति

मैंने प्रेम का रोग लिया।


छोड़ दिया महलों का वैभव

संतों की करी अगुआई।


विष का प्याला दिया राणा जी ने

मैं पीने में किंचित ना घबराई।


तुम क्या जानो प्रेम क्या होता

है मैंने प्रेम को पहचाना।


बिना किसी स्वारथ के

है कृष्ण को अपना वर माना।


दोनों की तू-तू, मैं-मैं सुन

दिए हरि फिर मुस्काय।


देख विवाद बढ़ता दोनों में 

सखियों के निकट आए।


बोले सुन ओ राधा मीरा

क्यों तुम बैर निभाती हो।


मुझको पाया किसने ज्यादा

क्यों मन को भरमाती हो।


प्रेम तुम दोनों से करता मैं अगाध

दोनों ने निष्काम प्रेम से लिया है मुझको साध।


सागर से मिल बूंद ओस की

सागर ही बन जाती है।


किसने पाया मुझको कितना

ये तौल कहां फिर आती है।



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