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Laxmi Dixit

Others

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Laxmi Dixit

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दोहा 5

दोहा 5

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कंठ हार भोले सजे है परम मूल्य वान।

भक्त अपरिमित वासुकी न करे कोई मान।।


बंधे मेरु पर्वत से छलनी हुआ शरीर।

मंथन का दायित्व ले हर ली जग की पीर।।



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