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मिली साहा

Abstract Inspirational

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मिली साहा

Abstract Inspirational

अकेलेपन को गले लगाकर

अकेलेपन को गले लगाकर

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अकेलेपन को गले लगाकर,

खुद के साथ थोड़ा सा गुनगुनाकर,

जोड़ा जो आज खुद से खुद का नाता मैंने,

तो खुशियों ने भी स्वागत किया गले लगा कर।


जाने कितने ही सवालों का बवंडर,

उथल-पुथल मचा रहा था मन के अंदर,

बेचैन था जाने कब से जवाब के इंतजार में,

आज स्पष्ट है सबकुछ तो जीना आया खुलकर।


चल रहा था जो दर्द संभालकर,

निकाल फेंका सब अश्कों में बहाकर,

बीते लम्हे कड़वी यादें जो मन के काग़ज़ पर,

नवीन यादें बनाने चला मैं आज उनको मिटाकर।


जी रहा था जब तक अकेलेपन से लड़कर,

हर लम्हा कोस रहा था खुद को ही तन्हा रहकर,

क़फ़स लग रही थी ज़िन्दगी भी बस काट रहे थे दिन,

पर आज खुद को देखा है मैंने मन के झरोखे से झाँककर।


आ रहा है जहाँ से उम्मीद का प्रकाश नज़र,

ख़त्म नहीं हुआ है कुछ भी अभी बाकी है सफ़र,

उम्मीद की स्याही है साथ और हौसले की है क़लम तो,

बन जाएगी पहचान भी यहाँ अपनी तकदीर खुद लिखकर।



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