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JAI GARG

Abstract

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JAI GARG

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पाबंदी

पाबंदी

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भक्ति न सही मेहनत करके रोटी रोज़ी का जुगाड़ किया

काश तुम लालच मे न पड़कर सब को जिने का हक़ देते


न मेहनत कि सोची और आरती पुजी पतियों की उतारी

करोना आया, बेघर-बेसहारे हमे, मरने को छोड़ दिया?


पैसा नही,खाने का क्या भरोसा, छीना काम तालेबन्दी ने

आख़िर कब तक सह पाएँगे बेदर्द ज़माने के यह सितम !


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