अफ़सोस
अफ़सोस
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बाँटना ही है तो अपने देश की
बदसूरती बांटो कुछ ऐसे
दूर खुले आसमान से घिरा
समुद्र का रेतीला किनारा हो
छाते के नीचे तप्ति धूप के
बसेरे में सागर कि ठंडी हवा
आज़ादी से जीने दो क्यो
याद कराते हो कचरे के ढेर?
क़ानून नही बंदिशें केसी हर
किसी को हक़ हैं मज़े लेने के
गंदगी कौन साथ ले जाता है,
फैलाने को आतुर रहता हैं!