बुंदे
बुंदे
कुछ यादें ऐसी हे, जो
घड़ा छलकने पर
हमे मूक दर्शक बना
बूँदों कि तरह समट जाती हे,
जैसे समय का रूक जाना
अनगिनत ख़्वाबो मे लिप्टे
उस का आना जाना हमे
फिर से सुहाना लगता हे।
लहरो पर सवार होकर तुम
प्रतिबिम्बित छाया बनकर
उत्कृष्ट स्वभाव से, हमारे
भोलेपन को उभार लेना;
और खोने का ग़म जब भी तुम महसूस करो;
समेट लेना, वो समुद्र से पल जो अपने लगें!