ऐ चीनियों
ऐ चीनियों
आसमानों मे उड़ने कि लालसा पर बंदिशें नही चाहाए
हाथ खुले हे पर आज़ादी कोसो दूर नज़र नहा आती हे
बादलों को देख एक टीस जब उठती हे, मन चीर जाए
कब तक भटकना होगा करोना तो पीछे ही पड़ गया हे।
यह कैसी आज़ादी, प्राकृति खुल कर जीने नहींं देती है
आपने प्रभुत्व के लिए उजड़ दिया चमन किस के लिए ?