मन का आकाश
मन का आकाश
मन के आकाश में
विचारों के बादल हैं।
हवा के साथ उड़ते हुये बादल
प्रेम से संघनित होते बादल
प्रकृति के इशारे पर
बरसते हुये बादल।
ठीक ठीक मन की तरह
अपने ही आकाश में घुमड़ते हुये बादल।
आदमी की तरह जीते
और भटकते हुये बादल।
कभी कभी आदमी से
बात करते हैं
पर आदमी का क्या है
वो तो कुछ न कुछ
कहता ही रहता है बादलों से।
पर जब बादल बोलते हैं
तो पूछ रहे होते हैं
कहा़ँ बरसूं
कितना बरसूं
कब बरसूं।
