Nupur singh

Abstract

4.9  

Nupur singh

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कहूँ कवयित्री खुद को मैं

कहूँ कवयित्री खुद को मैं

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कहूँ कवयित्री खुद को मैं,

या आम व्यक्ति कहलाऊँ ?


विद्वानों के इस जग में मैं,

किसको क्या सिखा जाऊँ ?

भटक -भटक कर राह मिली है,

किसको दिशा मैं दिखा जाऊँ ?


कहूँ कवयित्री खुद को मैं,

या आम व्यक्ति कहलाऊँ ?


पथ दिखाने का किसी को,

 हक मुझको मिला नहीं,

गलत देखके रुक जाऊँ,

या बुरी मै सबसे बनजाऊँ ?


भाव खुद के लिख जाऊँ,

या कलम उठाकर रख जाऊँ,

लिखकर शब्द मिटा जाऊँ,

या उन भावों को अमर बनाऊँ ?


पाठशाला में मतों की,

दुबककर मैं बैठ जाऊँ,

या हाथ उठाकर, डटकर मैं,

हारे मत को दोहराऊं ?


मोल बुराई दुनियाँ से मैं ,

कण-कण सच्चा चुन लाऊँ,

 मत पर अपने अड़ जाऊँ,

या उनके मत में ढल जाऊँ ?


भावुक होकर रुक जाऊँ,

या कठोर मन से बढ़ जाऊँ,

मीठे बोलों का स्वाद चखूँ,

या सच्चे वचन मैं पी जाऊँ ?


कहूँ कवयित्री खुद को मैं,

या आम व्यक्ति कहलाऊँ,


खातिर दुनिया के,

क्या मर जाऊँ,क्या मिट जाऊँ,

या खुदके खातिर ,

मैं बच जाऊँ, मैं हट जाऊँ,


अंत को देख मैं

क्या रुक जाऊँ, क्या थक जाऊँ,

या उस अनंत को देख,

मैं जी जाऊँ, मै उड़ जाऊँ।

कहूँ कवयित्री खुद को मैं,

या आम व्यक्ति कहलाऊँ ?


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