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Nupur singh

Abstract

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Nupur singh

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ऐ सफर ऐ रास्ते मेरी मंज़िल के

ऐ सफर ऐ रास्ते मेरी मंज़िल के

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ऐ सफ़र, ऐ रास्ते मेरी मंज़िल के

मिलकर उससे कहा दे,

ज़रा सब्र कर ले,

ऐ सफर, ऐ रास्ते

कहना में पहुँचूंगी उस तक।


देर से सही पर रुकूँगी नहीं,

कहना भरकर लाऊंगी पिटारा,

ज्ञान से लदा,

रोशनी निकलेगी उससे ,सूर्य सी सदा ,

ऐ सफर ऐ रास्ते।


ज़रा रुक, मैं थोड़ा अटक गई

कुछ ठोकरें खाकर,

ज़रा सा भटक गई,

लड़खड़ाई हूँ, गिरी नहीं,

डरी थी मगर रुकी नहीं।


मैं आतुर हूँ

लांघने उन पत्थरों को,

खोजने उन कलियों,

उन तितलियों को,

ऐ सफर, ऐ रास्ते।


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