कितनी खुशी होती है
कितनी खुशी होती है
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कितनी खुशी होती है,
दर्द को झुठलाकर ?
मुहावरों को सत्य मानकर,
या लोकोक्तियों से मन बहलाकर,
कितनी खुशी होती है ?
आँसुओं को शांत बिठाकर,
बचपन की नन्ही सी आशा को,
छोटा सा बताकर,
या जी उठने की आवाज़ का,
बड़ा सा मज़ाक बनाकर
कितनी खुशी होती है,
दर्द को झुठलाकर ?