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Nupur singh

Abstract

3  

Nupur singh

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कितनी खुशी होती है

कितनी खुशी होती है

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कितनी खुशी होती है,

दर्द को झुठलाकर ?

मुहावरों को सत्य मानकर,

या लोकोक्तियों से मन बहलाकर,

कितनी खुशी होती है ?


आँसुओं को शांत बिठाकर,

बचपन की नन्ही सी आशा को,

छोटा सा बताकर,

या जी उठने की आवाज़ का,


बड़ा सा मज़ाक बनाकर

कितनी खुशी होती है,

दर्द को झुठलाकर ?


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